दद्दा दिनेश कुमार सिंह,एस एस एल, इलाहाबाद
दद्दा का अर्थ होता है दादा की तरह पालन करने वाला,प्यार करने वाला।दद्दा का अर्थ बड़ भाई भी होता है।सर सुन्दर लाल छात्रावास के 1964 से 2020 तक के लोग उन्हें दद्दा कह कर सम्मान प्यार देते थे।अपने साथियों के जन्म दिन, विवाह तिथि पर साठ सत्तर अस्सी के दशक में पोस्ट कार्ड डालते थे तत्पश्चात फोन करना नहीं भूलते थे।
अर्जुनसिंह जी मुख्यमंत्री मध्यम प्रदेश और केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री के दामाद हैं बी पी सिंह,प्रिन्स आप सिंगरौली, दद्दा उन प्रिंस को सर सुंदर लाल छात्रावास लाये।हास्टेल के क्रिकेट सितारे थे,फास्ट बोलर,स्विंग मास्टर। कैसे मोहिंदर अमरनाथ की दिल्ली यूनिवर्सिटी टीम के एम सी सी ग्राउंड पर विज्जी ने विकेट चटकाये थे।हमारी दद्दा की खूब बातें होती थीं।दद्दा का अर्जुन सिंह दामाद जैसा सम्मान करते थे।उनका घर खुला रहता था दद्दा के लिए। लेकिन क्या मजाल कि कोई काम करवाने को कहें। अर्जुनसिंह जी हास्टेल आते रहते थे।
दद्दा को कभी गुस्सा नहीं आता था,किसी से नाराज़ नहीं हुये,कभी झूठ नहीं बोला,कभी धन के बारे में सोचा ही नहीं,।काम सदा उनसे दूर रहता था। रामचरितमानस में "काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ" कहा है। गीता में भी
"त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन:।
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्रयं त्यजेत"
उनमें क्रोध कभी देखा ही नहीं,लोभ किया ही नहीं,काम की न बातें,न मजाक न शादी न महबूबा।यदि यह सब नरक के मार्ग बताये तो दद्दा तो इनके विपरीत ही रहे तो स्वर्ग के अधिकारी ज्ञात होते हैं।
दद्दा को तीर्थ,पूजा,पाठ,तिलक,माला से कोई मतलब नहीं लेकिन हर इंसान को भगवान की तरह ही प्रसन्न रखते थे।"सर्व भूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि" पूरा उनमें उतरता था।
दूसरों की सहायता उनका कष्ट कैसे दूर हो इसके लिए अपने सम्पर्क सूत्रों का इस्तेमाल करते थे।सम्पर्क पूरे देश में इलाहाबाद के नाते थे। प्रशासन, पुलिस,न्याय,कर सभी में सर्वोच्च पदों पर दस बीस नहीं सैकड़ों लोग थे जो दद्दा को सर माथे पर रखतें थे।उनके स्वार्थ रहित प्रेम के स्वरूप के कारण।
लगता है मानस की बात सही है।
"परहित बस जिनके मन माहीं।
तिन्ह कहुं जग दुर्लभ कछु नाहीं।।
उनका धर्म ही परहित था।
अभी बहुत कुछ उनके खेल,एडवोकेट शिप,जजों से मित्रता,आवास में सामान स्टोर सा भरा होना उसी के बीच हो जाना पर लिखना बाकी।
ऐसे फकीर कहो,फक्कड़ कहो,संत कहो दद्दा देते ही रहे ज़िंदगी भर कमाई केवल दोस्ती,मित्रता।
राम निवास चतुर्वेदी
अर्जुनसिंह जी मुख्यमंत्री मध्यम प्रदेश और केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री के दामाद हैं बी पी सिंह,प्रिन्स आप सिंगरौली, दद्दा उन प्रिंस को सर सुंदर लाल छात्रावास लाये।हास्टेल के क्रिकेट सितारे थे,फास्ट बोलर,स्विंग मास्टर। कैसे मोहिंदर अमरनाथ की दिल्ली यूनिवर्सिटी टीम के एम सी सी ग्राउंड पर विज्जी ने विकेट चटकाये थे।हमारी दद्दा की खूब बातें होती थीं।दद्दा का अर्जुन सिंह दामाद जैसा सम्मान करते थे।उनका घर खुला रहता था दद्दा के लिए। लेकिन क्या मजाल कि कोई काम करवाने को कहें। अर्जुनसिंह जी हास्टेल आते रहते थे।
दद्दा को कभी गुस्सा नहीं आता था,किसी से नाराज़ नहीं हुये,कभी झूठ नहीं बोला,कभी धन के बारे में सोचा ही नहीं,।काम सदा उनसे दूर रहता था। रामचरितमानस में "काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ" कहा है। गीता में भी
"त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन:।
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्रयं त्यजेत"
उनमें क्रोध कभी देखा ही नहीं,लोभ किया ही नहीं,काम की न बातें,न मजाक न शादी न महबूबा।यदि यह सब नरक के मार्ग बताये तो दद्दा तो इनके विपरीत ही रहे तो स्वर्ग के अधिकारी ज्ञात होते हैं।
दद्दा को तीर्थ,पूजा,पाठ,तिलक,माला से कोई मतलब नहीं लेकिन हर इंसान को भगवान की तरह ही प्रसन्न रखते थे।"सर्व भूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि" पूरा उनमें उतरता था।
दूसरों की सहायता उनका कष्ट कैसे दूर हो इसके लिए अपने सम्पर्क सूत्रों का इस्तेमाल करते थे।सम्पर्क पूरे देश में इलाहाबाद के नाते थे। प्रशासन, पुलिस,न्याय,कर सभी में सर्वोच्च पदों पर दस बीस नहीं सैकड़ों लोग थे जो दद्दा को सर माथे पर रखतें थे।उनके स्वार्थ रहित प्रेम के स्वरूप के कारण।
लगता है मानस की बात सही है।
"परहित बस जिनके मन माहीं।
तिन्ह कहुं जग दुर्लभ कछु नाहीं।।
उनका धर्म ही परहित था।
अभी बहुत कुछ उनके खेल,एडवोकेट शिप,जजों से मित्रता,आवास में सामान स्टोर सा भरा होना उसी के बीच हो जाना पर लिखना बाकी।
ऐसे फकीर कहो,फक्कड़ कहो,संत कहो दद्दा देते ही रहे ज़िंदगी भर कमाई केवल दोस्ती,मित्रता।
राम निवास चतुर्वेदी
मै दद्दा को बहुत छोटी उम्र १४-१५ मिल पाया। उनके जैसा प्यारे और प्यार बाटने वाले व्यक्ति के आस पास होना ही एक शान कि बात होती है। याद आता है स्त्तार क्लब टेबल टेनिस टूर्नामेंट के फाइनल में, इस।इस।एल में ही मेरी क्या प्यार से धुलाई की थी! दद्दा फटट्टे से खेलते थे_ बहुत ही कठिन और चालाक तरीके से।
ReplyDeleteमेरी आखरी मुलाकात करीब १५ साल पहले श्यामा चरण जी के दिल्ली स्थित म।पी फ्लैट में हुई थी_ खूब रमी खेला था उस रात को, मेरे मित्र प्रदीप कानोड़िया के साथ।
एक अतुलनीय इंसान, प्यार के सिकंदर, कहां चले गए, मेरे दद्दा?
अभिजीत राय
दिल्ली १५.५.२०
Kindly also forward to my other bro, Yatiji Thanks
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